'नई MVA' में BMC चुनाव का फॉर्मूला तय! उद्धव ने राज ठाकरे को दीं इतनी सीटें, गठबंधन से
महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा से अप्रत्याशित रही है, और मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव इसका एक प्रमुख केंद्र रहे हैं। राज्य के राजनीतिक गलियारों से आ रही ताजा खबरों के अनुसार, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना (यूबीटी) गुट ने आगामी बीएमसी चुनावों के लिए 'नई महा विकास अघाड़ी' (MVA) के तहत सीट-बंटवारे का एक अनूठा फॉर्मूला तैयार किया है। इस नए समीकरण में उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे को गठबंधन में शामिल होने के लिए एक महत्वपूर्ण पेशकश की है, जिसमें उन्हें 12 से 15 वार्ड देने की बात कही जा रही है।
'नई MVA' में BMC चुनाव का फॉर्मूला तय! उद्धव ने राज ठाकरे को दीं इतनी सीटें, गठबंधन से
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
मुंबई, 22 नवंबर, 2023: मुंबई की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है, क्योंकि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना (यूबीटी) गुट ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) को अपनी विस्तारित 'महा विकास अघाड़ी' में शामिल करने का प्रस्ताव रखा है। सूत्रों के अनुसार, उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे की पार्टी को आगामी मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनावों में 12 से 15 सीटों की पेशकश की है। यह कदम शिवसेना (यूबीटी) और MNS के बीच दशकों पुरानी प्रतिद्वंद्विता को खत्म कर एक नई राजनीतिक साझेदारी की नींव रख सकता है, जिसका उद्देश्य भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के गठबंधन को चुनौती देना है।
यह कथित सीट-बंटवारा फॉर्मूला बंद दरवाजों के पीछे हुई कई बैठकों और चर्चाओं का परिणाम है। 'नई MVA' की अवधारणा मौजूदा MVA (शिवसेना यूबीटी, NCP-शरद पवार गुट और कांग्रेस) के विस्तार का सुझाव देती है, जिसमें राज ठाकरे को भी शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य महाराष्ट्र के शहरी केंद्रों, विशेषकर मुंबई में 'मराठी मानुष' के वोटबैंक को मजबूत करना और भगवा खेमे की राजनीतिक शक्ति को कमजोर करना है। इस कदम को शिवसेना (यूबीटी) अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने और बीएमसी पर अपना ऐतिहासिक नियंत्रण बहाल करने की कोशिश के रूप में देख रही है।
'नई MVA' में BMC चुनाव का फॉर्मूला तय! उद्धव ने राज ठाकरे को दीं इतनी सीटें, गठबंधन से — प्रमुख बयान और संदर्भ
महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का पुनर्मिलन हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ अपनी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई थी, जिसके बाद से दोनों चचेरे भाइयों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता गहरी हो गई थी। हालांकि, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना में हुए विभाजन और उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद से, राजनीतिक मजबूरियों ने उन्हें एक साथ आने के लिए विवश किया है। इस आंतरिक कलह ने उद्धव गुट को कमजोर किया है, और अब वे अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए नए सहयोगियों की तलाश में हैं।
अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे को व्यक्तिगत रूप से संपर्क किया है और बीएमसी चुनावों में MNS को लगभग 12-15 सीटें देने की पेशकश की है। यह प्रस्ताव MNS के लिए एक महत्वपूर्ण वापसी का अवसर हो सकता है, जिसकी चुनावी किस्मत पिछले कुछ वर्षों में गिरावट पर रही है। MNS, जो कभी मुंबई और नासिक में अपनी मजबूत पकड़ रखती थी, को पिछले चुनावों में भारी नुकसान उठाना पड़ा था। इस गठबंधन से उसे अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने का मौका मिल सकता है, जिससे उसकी राजनीतिक प्रासंगिकता फिर से बढ़ सकती है।
इस संभावित गठबंधन के पीछे कई रणनीतिक कारण हैं। पहला, यह मराठी वोट बैंक को एकजुट कर सकता है, जो पारंपरिक रूप से शिवसेना का गढ़ रहा है। शिवसेना के विभाजन के बाद, मराठी वोटों का बिखराव हो गया है, जिसका लाभ भाजपा और शिंदे गुट को मिल रहा है। राज ठाकरे के साथ आने से इन वोटों को फिर से एक छत के नीचे लाने में मदद मिल सकती है, जिससे यूबीटी की स्थिति मजबूत होगी। दूसरा, बीएमसी पर नियंत्रण हमेशा से शिवसेना के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न रहा है। मुंबई की सबसे धनी नागरिक संस्था पर फिर से कब्जा करना उद्धव ठाकरे के लिए राजनीतिक अस्तित्व का सवाल है।
इसके अतिरिक्त, MNS के साथ गठबंधन से MVA को कुछ शहरी क्षेत्रों में भाजपा और शिंदे सेना के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है, जहां MNS की अभी भी कुछ पॉकेट में उपस्थिति है। राज ठाकरे की भाषण शैली और 'मराठी मानुष' का उनका एजेंडा अभी भी कुछ वर्गों में लोकप्रिय है। हालांकि, यह गठबंधन आसान नहीं होगा, क्योंकि MNS की राजनीतिक विचारधारा और अन्य MVA घटकों, विशेषकर कांग्रेस, के बीच कुछ मतभेद हैं, खासकर MNS के अप्रवासी विरोधी रुख को लेकर। इन मतभेदों को सुलझाना एक बड़ी चुनौती होगी।
इस प्रस्तावित गठबंधन पर शरद पवार के नेतृत्व वाली NCP और कांग्रेस की भी सहमति लेनी होगी। दोनों पार्टियां इस कदम को लेकर अपनी प्रतिक्रियाएं दे सकती हैं, लेकिन भाजपा-शिंदे गठबंधन को हराने के व्यापक लक्ष्य को देखते हुए, वे राज ठाकरे को स्वीकार करने के लिए तैयार हो सकते हैं, भले ही उनकी कुछ वैचारिक आपत्तियां हों। इस घटनाक्रम से महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू होने की उम्मीद है, जहाँ पुराने प्रतिद्वंद्वी नए राजनीतिक समीकरणों के तहत एक साथ आ रहे हैं ताकि एक मजबूत गठबंधन बनाया जा सके।
पार्टियों की प्रतिक्रिया
शिवसेना (यूबीटी): उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना (यूबीटी) गुट के नेताओं ने इस खबर पर सीधे तौर पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है, लेकिन संकेत दिए हैं कि वे बृहन्मुंबई महानगरपालिका में 'तानाशाही' को खत्म करने और मुंबई के हित में 'व्यापक एकता' के लिए तैयार हैं। यूबीटी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "मुंबई और मराठी मानुष के भविष्य के लिए सभी समान विचारधारा वाले दलों को एक साथ आना चाहिए। अगर राज ठाकरे जी भी इस दृष्टि से सहमत हैं, तो हम खुले दिल से उनका स्वागत करेंगे।" यह बयान गठबंधन की संभावनाओं को हवा देता है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS): राज ठाकरे की MNS ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन पार्टी के सूत्रों का कहना है कि वे विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। MNS के प्रवक्ता ने कहा, "हमें कोई आधिकारिक प्रस्ताव नहीं मिला है। जब और अगर हमें कोई प्रस्ताव मिलता है, तो पार्टी नेतृत्व उस पर विचार करेगा और मुंबई के लोगों के सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेगा।" हालांकि, MNS कार्यकर्ता इस संभावना को लेकर उत्साहित दिख रहे हैं, क्योंकि इससे उन्हें राजनीतिक प्रासंगिकता फिर से हासिल करने का मौका मिल सकता है और पार्टी को एक नई दिशा मिल सकती है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP - शरद पवार गुट): NCP के शरद पवार गुट ने इस संभावित गठबंधन पर सतर्क प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "हम एमवीए के भीतर सभी सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालांकि, किसी भी नए सदस्य को शामिल करने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाएगा। हम मुंबई को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।" यह बयान दर्शाता है कि NCP खुले दिमाग से इस पर विचार करने को तैयार है, लेकिन अंतिम निर्णय सभी पक्षों की सहमति से ही लिया जाएगा।
कांग्रेस: कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता राज ठाकरे की MNS को शामिल करने पर कुछ हद तक असहजता व्यक्त कर सकते हैं, विशेषकर MNS के अप्रवासी विरोधी इतिहास के कारण। हालांकि, मुंबई कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा, "हम भाजपा-शिंदे गठबंधन को सत्ता से बाहर करने के लिए पूरी तरह से एकजुट हैं। यदि कोई भी ताकत इस लक्ष्य में मदद कर सकती है, तो उस पर विचार किया जा सकता है, बशर्ते वह हमारे संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप हो।" यह संकेत देता है कि कांग्रेस भी रणनीतिक रूप से इस संभावना पर विचार कर सकती है।
भाजपा और शिंदे गुट: सत्तारूढ़ भाजपा और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने इस कथित गठबंधन को 'अवसरवादी' और 'सत्ता के लिए भाईचारे का नाटक' करार दिया है। भाजपा के एक प्रवक्ता ने कहा, "ये सभी दल सिर्फ कुर्सी के लिए एक साथ आ रहे हैं। इनकी कोई विचारधारा नहीं है। मुंबई के लोग इस अपवित्र गठबंधन को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।" शिंदे गुट के एक नेता ने कहा कि यह उद्धव ठाकरे की हताशा का प्रतीक है, क्योंकि वे अपनी राजनीतिक जमीन खो चुके हैं और अब सहारे की तलाश में हैं।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
यह संभावित 'नई MVA' मुंबई और महाराष्ट्र की राजनीति में कई दूरगामी प्रभाव डाल सकती है। सबसे पहले, यह मराठी वोटबैंक को समेकित करने का प्रयास है, जिसे शिवसेना में विभाजन के बाद बिखरा हुआ देखा गया था। राज ठाकरे के शामिल होने से कुछ हद तक मराठी वोटों को MVA के पक्ष में मोड़ा जा सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां MNS का अभी भी आधार है। यह भाजपा-शिंदे गठबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है, क्योंकि वे भी मराठी वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें मराठी अस्मिता के प्रतीक के रूप में पेश करते हैं।
दूसरा, यह उद्धव ठाकरे के लिए एक रणनीतिक जीत होगी, क्योंकि वे अपने परिवार के भीतर के मतभेदों को पाटकर राजनीतिक एकता का प्रदर्शन करेंगे। यह कदम उनकी 'मराठी अस्मिता' और 'हिंदुत्व' के ब्रांड को फिर से स्थापित करने में मदद कर सकता है, जिसे शिंदे गुट और भाजपा भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, इस गठबंधन में वैचारिक मतभेद एक चुनौती भी बन सकते हैं। MNS का कट्टर मराठी राष्ट्रवादी एजेंडा कांग्रेस और NCP के अधिक धर्मनिरपेक्ष रुख के साथ कैसे तालमेल बिठाएगा, यह देखना बाकी है। यह गठबंधन एक जटिल राजनीतिक समीकरण बना सकता है।
तीसरा, बीएमसी, जो देश की सबसे धनी नागरिक संस्था है, पर नियंत्रण का राजनीतिक महत्व बहुत अधिक है। यह न केवल वित्तीय संसाधनों पर नियंत्रण प्रदान करता है, बल्कि मुंबई में शहरी विकास और बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं को भी प्रभावित करता है। इस पर कब्जा करने वाला गठबंधन महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करेगा और आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एक मजबूत आधार तैयार करेगा। यह गठबंधन भाजपा और शिंदे गुट पर मनोवैज्ञानिक दबाव भी डालेगा, जिन्हें मुंबई में अपनी ताकत साबित करने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा और उन्हें अपनी चुनावी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
इसके अलावा, यह घटनाक्रम महाराष्ट्र में 'INDIA' गठबंधन की व्यापक रणनीति का भी हिस्सा हो सकता है, जहां सभी विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं। राज ठाकरे को शामिल करने से एक व्यापक विरोधी मोर्चा तैयार हो सकता है, लेकिन इसके लिए कुछ वैचारिक लचीलेपन की आवश्यकता होगी और सभी सहयोगियों के बीच विश्वास स्थापित करना होगा। यह महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य को और अधिक जटिल और दिलचस्प बना देगा, जहां आगामी बीएमसी चुनाव 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए एक महत्वपूर्ण पूर्वाभ्यास साबित होंगे और राज्य की राजनीति की दिशा तय करेंगे।
क्या देखें
- आधिकारिक घोषणा: यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे इस संभावित गठबंधन और सीट-बंटवारे के फॉर्मूले की आधिकारिक घोषणा करते हैं और यह कब तक होता है।
- MVA सहयोगियों की प्रतिक्रिया: कांग्रेस और NCP (शरद पवार गुट) इस 'नई MVA' के विस्तार पर किस तरह की अंतिम सहमति या असहमति जताते हैं, और क्या उनके बीच के मतभेद उभरते हैं।
- राज ठाकरे की शर्तें: क्या राज ठाकरे केवल बीएमसी सीटों के साथ संतुष्ट होंगे, या क्या वह विधानसभा या अन्य चुनावों के लिए भी प्रतिबद्धता चाहेंगे और उनके अन्य एजेंडे क्या होंगे।
- भाजपा-शिंदे गुट की रणनीति: सत्तारूढ़ गठबंधन इस संभावित चुनौती का मुकाबला करने के लिए अपनी रणनीति कैसे बदलता है और क्या वह कोई जवाबी कदम उठाता है, जैसे कि MNS के कुछ नेताओं को अपने पाले में लाना।
- जनता की प्रतिक्रिया: मुंबई के मतदाताओं, विशेषकर मराठी मानुष और गैर-मराठी समुदायों की इस नए गठबंधन के प्रति क्या प्रतिक्रिया रहती है, और क्या यह वास्तव में उनके पक्ष में काम करता है।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
उद्धव ठाकरे द्वारा राज ठाकरे को 'नई MVA' में शामिल करने का प्रस्ताव मुंबई की राजनीति में एक भूकंप ला सकता है। यदि यह गठबंधन मूर्त रूप लेता है, तो यह बीएमसी चुनावों को अत्यधिक प्रतिस्पर्धी बना देगा और भाजपा-शिंदे गठबंधन के लिए एक मजबूत चुनौती पेश करेगा। यह कदम न केवल महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) की स्थिति को मजबूत कर सकता है, बल्कि MNS को भी एक नई जान दे सकता है, जिससे उसे अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने का अवसर मिलेगा।
हालांकि, इस गठबंधन में कई चुनौतियां भी हैं, जिनमें वैचारिक मतभेद और अन्य MVA सहयोगियों को मनाना शामिल है। राज ठाकरे के अतीत के स्टैंड और उनकी राजनीतिक विचारधारा को मुख्यधारा के MVA घटकों के साथ कैसे एकीकृत किया जाएगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। इन चुनौतियों के बावजूद, अगर यह गठबंधन सफल होता है, तो यह महाराष्ट्र के राजनीतिक भविष्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है, 2024 के आम चुनावों के लिए मंच तैयार कर सकता है और राज्य की राजनीति में एक नया समीकरण स्थापित कर सकता है।
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