बाबरी मस्जिद वाले हुमायूं बनाएंगे नई पार्टी, ओवैसी के साथ मिलकर लड़ेंगे ममता के खिलाफ चुनाव
पश्चिम बंगाल की राजनीतिक धरती पर एक बार फिर नई हलचल देखने को मिल रही है। बाबरी मस्जिद के मुकदमे से जुड़े रहे प्रमुख मुस्लिम नेता हुमायूं मर्चेंट ने अपनी एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के साथ मिलकर आगामी चुनावों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस (TMC) के खिलाफ मैदान में उतरेंगे। यह घोषणा राज्य की सियासी समीकरणों को बदलने की क्षमता रखती है।
बाबरी मस्जिद वाले हुमायूं बनाएंगे नई पार्टी, ओवैसी के साथ मिलकर लड़ेंगे ममता के खिलाफ चुनाव
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
कोलकाता, 21 नवंबर, 2025: पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। बाबरी मस्जिद विवाद में सक्रिय भूमिका निभाने वाले हुमायूं मर्चेंट ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी नई राजनीतिक पार्टी के गठन का ऐलान किया है। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी पार्टी असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM के साथ मिलकर पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ेगी, जिसका मुख्य उद्देश्य राज्य में तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती देना है।
यह गठबंधन विशेष रूप से उन सीटों पर असर डाल सकता है जहाँ मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। हुमायूं मर्चेंट का यह कदम आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में राज्य के राजनीतिक समीकरणों को जटिल बना सकता है। दोनों नेताओं का लक्ष्य ममता बनर्जी की पार्टी से मुस्लिम वोट बैंक को अपनी ओर खींचना है, जिसे वे लंबे समय से अपना मजबूत गढ़ मानती आ रही हैं।
बाबरी मस्जिद वाले हुमायूं बनाएंगे नई पार्टी, ओवैसी के साथ मिलकर लड़ेंगे ममता के खिलाफ चुनाव — प्रमुख बयान और संदर्भ
हुमायूं मर्चेंट ने अपनी घोषणा में कहा, “बाबरी मस्जिद विवाद में न्याय के लिए हमारा संघर्ष जारी है। अब समय आ गया है कि मुस्लिम समुदाय को पश्चिम बंगाल में अपनी आवाज बुलंद करने के लिए एक मजबूत राजनीतिक मंच मिले।” उन्होंने आगे कहा कि राज्य में मुस्लिम समुदाय के हितों की अनदेखी की जा रही है और मौजूदा सरकार उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है। मर्चेंट ने दावा किया कि उनकी नई पार्टी मुसलमानों के अधिकारों और उनके विकास के लिए काम करेगी।
असदुद्दीन ओवैसी ने हुमायूं मर्चेंट के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा, “AIMIM हमेशा हाशिए पर पड़े समुदायों की आवाज उठाने के लिए प्रतिबद्ध रही है। पश्चिम बंगाल में भी हम एक मजबूत वैकल्पिक नेतृत्व प्रदान करना चाहते हैं जो मुसलमानों और दलितों के मुद्दों को ईमानदारी से उठा सके।” ओवैसी ने अतीत में भी पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ने का प्रयास किया है, लेकिन उन्हें बहुत अधिक सफलता नहीं मिल पाई थी। हालांकि, हुमायूं मर्चेंट जैसे स्थानीय मुस्लिम नेता के साथ गठबंधन उन्हें राज्य में एक नई पहचान दिला सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि हुमायूं मर्चेंट का बाबरी मस्जिद से जुड़ाव उन्हें मुस्लिम समुदाय के बीच एक खास पहचान देता है। उनकी भावनात्मक अपील AIMIM के संगठनात्मक ढांचे के साथ मिलकर टीएमसी के पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। ममता बनर्जी ने हमेशा खुद को धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में प्रस्तुत किया है और मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा समर्थन प्राप्त किया है, लेकिन यह नया गठबंधन उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
हुमायूं मर्चेंट ने ममता बनर्जी सरकार पर मुस्लिम समुदाय के लिए कुछ खास न करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर केवल दिखावा किया गया है, जबकि जमीनी स्तर पर स्थितियां नहीं बदली हैं। ओवैसी ने भी इन आरोपों का समर्थन करते हुए कहा कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही पार्टियां मुसलमानों को केवल वोट बैंक के रूप में देखती हैं, जबकि उनके वास्तविक सशक्तिकरण के लिए कोई ठोस काम नहीं करती हैं।
इस गठबंधन का उद्देश्य केवल मुस्लिम वोटों को एकजुट करना नहीं है, बल्कि एक ऐसा सामाजिक-राजनीतिक मंच तैयार करना भी है जो राज्य में अन्य पिछड़े और वंचित समुदायों को भी आकर्षित कर सके। हुमायूं मर्चेंट और ओवैसी दोनों ही नेताओं का मानना है कि पश्चिम बंगाल में एक मजबूत गैर-टीएमसी और गैर-भाजपा विकल्प की आवश्यकता है, जो राज्य के सभी वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व कर सके।
पार्टियों की प्रतिक्रिया
तृणमूल कांग्रेस (TMC): ममता बनर्जी और टीएमसी नेताओं ने इस गठबंधन को 'भाजपा की बी-टीम' करार दिया है। टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, “यह भाजपा की साजिश है ताकि मुस्लिम वोट बंटें और उन्हें फायदा हो। ओवैसी और अब हुमायूं मर्चेंट, ये सभी भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं।” उन्होंने दावा किया कि पश्चिम बंगाल के मुस्लिम समुदाय ममता बनर्जी के साथ मजबूती से खड़े हैं और इस तरह के किसी भी प्रयास से उनके समर्थन में कमी नहीं आएगी।
भारतीय जनता पार्टी (BJP): भाजपा ने इस घटनाक्रम पर सतर्क प्रतिक्रिया दी है। प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, “यह टीएमसी की आंतरिक कलह का परिणाम है। ममता बनर्जी ने मुसलमानों को केवल वोट बैंक समझा और अब उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।” भाजपा ने हालांकि सीधे तौर पर गठबंधन का समर्थन नहीं किया, लेकिन यह उम्मीद जताई कि यह टीएमसी के वोट बैंक को कमजोर करेगा, जिससे भाजपा को फायदा मिल सकता है।
कांग्रेस और वाम दल: कांग्रेस और वाम दलों ने भी इस गठबंधन को लेकर चिंता व्यक्त की है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “यह पश्चिम बंगाल की धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए अच्छा संकेत नहीं है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने वाले दलों की उपस्थिति से राज्य की सामाजिक शांति भंग हो सकती है।” वाम दलों ने भी आरोप लगाया कि यह गठबंधन सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देगा और राज्य में ध्रुवीकरण को बढ़ाएगा।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
हुमायूं मर्चेंट की नई पार्टी और AIMIM के साथ उसका गठबंधन पश्चिम बंगाल की राजनीति में कई महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। सबसे प्रत्यक्ष प्रभाव मुस्लिम वोट बैंक पर पड़ेगा, जो पारंपरिक रूप से टीएमसी का एक मजबूत आधार रहा है। यदि यह गठबंधन मुस्लिम मतदाताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अपनी ओर खींचने में सफल होता है, तो यह टीएमसी की सीटों पर सीधा असर डाल सकता है, खासकर उन विधानसभा क्षेत्रों में जहां मुस्लिम आबादी अधिक है।
इस स्थिति से भाजपा को अप्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है। यदि मुस्लिम वोटों में विभाजन होता है, तो गैर-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना बढ़ सकती है, जिसका फायदा भाजपा को मिलेगा। यह रणनीति पहले भी कई राज्यों में देखी गई है जहां AIMIM की मौजूदगी ने वोटों का बंटवारा कर विपक्षी दलों को कमजोर किया है। पश्चिम बंगाल में, जहां भाजपा अपनी स्थिति मजबूत करने की लगातार कोशिश कर रही है, यह गठबंधन उनके लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है।
यह घटनाक्रम भारतीय राजनीति में अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व की बहस को भी तेज करेगा। हुमायूं मर्चेंट और ओवैसी दोनों ही इस बात पर जोर देते रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय को मुख्यधारा की पार्टियों में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है। उनका गठबंधन इस खालीपन को भरने का प्रयास कर रहा है, जिससे भविष्य में अन्य राज्यों में भी इसी तरह के राजनीतिक गठबंधनों को बढ़ावा मिल सकता है।
दीर्घकालिक रूप से, यह पश्चिम बंगाल की राजनीतिक पहचान को बदल सकता है। राज्य की राजनीति हमेशा धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सद्भाव पर आधारित रही है। हालांकि, धार्मिक पहचान पर आधारित पार्टियों के उदय से राज्य के सामाजिक ताने-बाने पर दबाव पड़ सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह गठबंधन कितनी गहराई तक जड़ों जमा पाता है और राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को कैसे नया आकार देता है।
क्या देखें
- पार्टी का नाम और विस्तृत एजेंडा: हुमायूं मर्चेंट की नई पार्टी का नाम क्या होगा और वह किन विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगी, यह महत्वपूर्ण होगा। उनका घोषणापत्र मुस्लिम समुदाय के लिए क्या खास पेश करता है, इस पर नजर रहेगी।
- AIMIM के साथ गठबंधन की शर्तें: गठबंधन की सीट-बंटवारे की रणनीति और दोनों दलों के बीच समन्वय कैसे काम करेगा, यह इसकी सफलता के लिए महत्वपूर्ण होगा। क्या यह गठबंधन केवल मुस्लिम बहुल सीटों पर केंद्रित होगा या व्यापक दायरे में लड़ेगा, यह देखना होगा।
- मुस्लिम वोट बैंक पर वास्तविक प्रभाव: क्या यह गठबंधन वास्तव में टीएमसी के मजबूत मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा पाएगा? जमीनी स्तर पर समर्थन जुटाना और मतदाताओं को अपने पक्ष में करना एक बड़ी चुनौती होगी।
- टीएमसी और भाजपा की रणनीति में बदलाव: इस नए गठबंधन के बाद ममता बनर्जी और भाजपा अपनी चुनाव रणनीतियों में क्या बदलाव करते हैं, यह दिलचस्प होगा। क्या टीएमसी अपने मुस्लिम मतदाताओं को फिर से जोड़ने के लिए और प्रयास करेगी या भाजपा इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश करेगी।
- राज्य के आगामी चुनावों पर असर: यह गठबंधन आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में राज्य के समग्र परिणाम को कैसे प्रभावित करता है। क्या यह वास्तव में सत्ता के समीकरणों को बदलने में सक्षम होगा या एक और छोटी ताकत बनकर रह जाएगा।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
हुमायूं मर्चेंट की नई पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी के साथ उनके गठबंधन की घोषणा ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में निश्चित रूप से एक नई बहस छेड़ दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह गठबंधन कितना प्रभावी साबित होता है और क्या यह ममता बनर्जी के किले में सेंध लगा पाता है। यदि वे मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होते हैं, तो यह राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से बदल सकता है और भाजपा के लिए भी नए रास्ते खोल सकता है।
हालांकि, पश्चिम बंगाल की राजनीति जटिल है, और मतदाताओं का मिजाज अक्सर अप्रत्याशित होता है। यह गठबंधन राज्य की धर्मनिरपेक्ष छवि और सामाजिक सद्भाव के लिए क्या मायने रखता है, यह भी एक बड़ा प्रश्न है। आने वाले समय में, राज्य की जनता और राजनीतिक विश्लेषक दोनों ही इस नए राजनीतिक प्रयोग के परिणामों पर करीब से नजर रखेंगे, जो शायद भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेगा।
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