संसद वंदे मातरम् बहस लाइव: 'वंदे मातरम् के बैकग्राउंड से मुस्लिम भड़केंगे' पीएम मोदी ने याद दिलाई नामुमकिन बात
भारतीय संसद में 'वंदे मातरम्' को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक संदर्भ को याद दिलाते हुए कहा कि अतीत में ऐसी आशंकाएं व्यक्त की गई थीं कि 'वंदे मातरम्' के गायन से मुस्लिम समुदाय भड़क सकता है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश में राष्ट्रवाद और धार्मिक पहचान के इर्द-गिर्द राजनीतिक विमर्श तेज हो गया है। प्रधानमंत्री के इस संदर्भ ने न केवल संसद के अंदर, बल्कि व्यापक राजनीतिक गलियारों और सार्वजनिक मंचों पर भी नई बहस छेड़ दी है।
संसद वंदे मातरम् बहस लाइव: 'वंदे मातरम् के बैकग्राउंड से मुस्लिम भड़केंगे' पीएम मोदी ने याद दिलाई नामुमकिन बात
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
नई दिल्ली, 17 जुलाई, 2024: भारतीय संसद के मानसून सत्र के दौरान एक बहस के बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'वंदे मातरम्' के ऐतिहासिक संदर्भ का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि एक समय था जब यह चिंता व्यक्त की गई थी कि 'वंदे मातरम्' के गायन से मुस्लिम समुदाय में नाराजगी या उत्तेजना फैल सकती है। पीएम मोदी ने यह टिप्पणी विपक्ष द्वारा उठाए गए कुछ सवालों के जवाब में की, जो राष्ट्रीय प्रतीकों और विभिन्न समुदायों की भावनाओं से संबंधित थे।
प्रधानमंत्री ने अपने बयान में किसी विशेष घटना या व्यक्ति का नाम नहीं लिया, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट किया कि इस तरह की आशंकाएं अतीत में 'सेक्यूलर ब्रिगेड' द्वारा फैलाई गई थीं। यह बयान राष्ट्रीय पहचान और समावेशिता पर चल रही बहस को फिर से सामने ले आया है। 'वंदे मातरम्' गीत, जो बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित है और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण प्रतीक रहा है, हमेशा से ही कुछ विवादों का विषय रहा है, खासकर इसके धार्मिक पहलुओं को लेकर।
Sansad Vande Mataram Debate Live: 'वंदे मातरम् के बैकग्राउंड से मुस्लिम भड़केंगे' पीएम मोदी ने याद दिलाई न... — प्रमुख बयान और संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में अपने संबोधन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्' को लेकर उठे पुराने विवादों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, "एक समय था जब 'वंदे मातरम्' के बैकग्राउंड में बजने पर कहा जाता था कि मुस्लिम भड़केंगे। यह विचार कुछ लोगों द्वारा फैलाया गया था, जिन्हें लगता था कि यह गीत किसी एक समुदाय के लिए आपत्तिजनक हो सकता है।" पीएम मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे विचार भारत की एकता को तोड़ने के उद्देश्य से प्रचारित किए गए थे और ये पूरी तरह से गलत साबित हुए हैं।
यह संदर्भ 20वीं सदी के मध्य में, विशेष रूप से स्वतंत्रता-पूर्व और संविधान सभा के गठन के समय की बहसों से जुड़ा है। 'वंदे मातरम्' गीत, जो बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास 'आनंदमठ' का हिस्सा है, भारतीय राष्ट्रवाद का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया था। हालाँकि, गीत के कुछ छंदों में 'माँ दुर्गा' को मातृभूमि के रूप में पूजने का वर्णन होने के कारण, कुछ मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने इस पर आपत्ति जताई थी, यह तर्क देते हुए कि इस्लाम में केवल अल्लाह की पूजा की जा सकती है।
महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू सहित कई राष्ट्रवादी नेताओं ने इस मुद्दे पर मध्यस्थता करने का प्रयास किया था। 1937 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने यह घोषणा की थी कि 'वंदे मातरम्' का पहला श्लोक और दूसरा श्लोक, जो धार्मिक संदर्भों से मुक्त हैं, को राष्ट्रगीत के रूप में गाया जा सकता है, जबकि उपन्यास के विवादास्पद हिस्सों को छोड़ दिया जाए। यह निर्णय विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय की चिंताओं को दूर करने के लिए लिया गया था।
स्वतंत्र भारत में, 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया, जबकि 'जन गण मन' को राष्ट्रगान के रूप में। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि 'वंदे मातरम्' को 'जन गण मन' के समान दर्जा प्राप्त होगा। उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि इस गीत के कुछ हिस्सों पर आपत्ति हो सकती है, लेकिन इसके ऐतिहासिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता। प्रधानमंत्री मोदी का बयान इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की याद दिलाता है, यह दर्शाता है कि कैसे राष्ट्र निर्माण के दौरान राष्ट्रीय प्रतीकों को लेकर विभिन्न मतभेद उभरे थे और उन्हें हल करने का प्रयास किया गया था।
पीएम मोदी ने परोक्ष रूप से उन राजनीतिक शक्तियों पर निशाना साधा, जो उनके अनुसार, वोटों के ध्रुवीकरण के लिए ऐसे मुद्दों का इस्तेमाल करती हैं। उन्होंने जोर दिया कि उनकी सरकार 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' के सिद्धांत पर काम कर रही है और राष्ट्र के प्रतीकों पर राजनीति करना देशहित में नहीं है। यह बयान मौजूदा राजनीतिक संदर्भ में राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के महत्व को रेखांकित करता है।
पार्टियों की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री के बयान के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों से तत्काल प्रतिक्रियाएं आईं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पीएम मोदी के बयान का जोरदार समर्थन किया, यह कहते हुए कि यह एक ऐतिहासिक सत्य है जिसे कुछ लोग राजनीतिक कारणों से नकारते रहे हैं। भाजपा नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि 'वंदे मातरम्' भारत की आत्मा है और सभी भारतीयों को इसका सम्मान करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पीएम ने उन ताकतों को बेनकाब किया है जो समाज में विभाजन पैदा करना चाहती हैं।
कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि पीएम मोदी जानबूझकर विभाजनकारी बयान देकर इतिहास को तोड़-मरोड़ रहे हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता ने कहा कि 'वंदे मातरम्' को लेकर जो भी ऐतिहासिक मतभेद थे, उन्हें देश के नेताओं ने आपसी सहमति से सुलझा लिया था और अब इस मुद्दे को दोबारा उठाना अनावश्यक है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ऐसे मुद्दों को उठाकर आगामी चुनावों से पहले ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पीएम मोदी के बयान को मुस्लिम समुदाय के प्रति अपमानजनक बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय मुसलमान देश के प्रति अपनी वफादारी साबित करने के लिए किसी भी 'वंदे मातरम्' टेस्ट की जरूरत नहीं है। ओवैसी ने याद दिलाया कि संविधान में सभी नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता दी गई है और राष्ट्रीय गीत के गायन को किसी पर थोपा नहीं जाना चाहिए। अन्य क्षेत्रीय दल और वामपंथी पार्टियां भी इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ खड़ी दिखीं, जिन्होंने इसे भाजपा की 'विभाजनकारी राजनीति' करार दिया।
समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसे दलों ने भी पीएम मोदी के बयान को 'मुस्लिम विरोधी' करार दिया और कहा कि ऐसे बयानों से देश की गंगा-जमुनी तहजीब को नुकसान पहुंचता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की विविधता ही उसकी ताकत है और किसी भी समुदाय को राष्ट्रीय प्रतीकों के नाम पर अलग-थलग नहीं किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर, इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गहरी खाई दिखाई दी, जो देश के राजनीतिक ध्रुवीकरण को और बढ़ावा देती है।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'वंदे मातरम्' पर बयान एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है। यह बयान न केवल राष्ट्रीय प्रतीकों पर भाजपा के रुख को मजबूत करता है, बल्कि विपक्ष पर 'तुष्टिकरण की राजनीति' करने का आरोप भी लगाता है। यह बयान भाजपा के मूल वोट बैंक, विशेष रूप से राष्ट्रवाद से जुड़े मतदाताओं को एकजुट करने में सहायक हो सकता है। यह दिखाता है कि भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे को लेकर कितनी गंभीर है और इसे राजनीतिक लाभ के लिए कैसे इस्तेमाल करती है।
इस बहस के गहरे राजनीतिक मायने हैं। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर बहस को फिर से जिंदा करता है, जहां राष्ट्रीय प्रतीकों और धार्मिक पहचान के बीच संतुलन अक्सर विवादास्पद रहा है। पीएम मोदी का यह बयान उस 'सेक्यूलर ब्रिगेड' को भी कटघरे में खड़ा करता है, जिस पर भाजपा अक्सर अतीत की 'गलत' नीतियों का आरोप लगाती रही है। यह विपक्ष को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यकों का 'तुष्टिकरण' करने वाला दिखाने का प्रयास है।
यह घटनाक्रम आने वाले विधानसभा चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले राजनीतिक विमर्श को आकार दे सकता है। भाजपा ऐसे मुद्दों के माध्यम से हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के अपने मुख्य एजेंडे को फिर से मजबूत करने का प्रयास करेगी, जबकि विपक्षी दल इसे सरकार की 'विभाजनकारी' नीति के रूप में पेश करेंगे। इससे समाज में ध्रुवीकरण बढ़ सकता है और विभिन्न समुदायों के बीच संवाद की खाई गहरी हो सकती है।
यह बहस राष्ट्रीय एकता और विविधता को बनाए रखने की चुनौती को भी उजागर करती है। एक ऐसा राष्ट्र जहां विभिन्न संस्कृतियां और धर्म सह-अस्तित्व में हैं, वहां राष्ट्रीय प्रतीकों की व्याख्या और स्वीकृति एक संवेदनशील मुद्दा बनी हुई है। इस तरह की बयानबाजी से अल्पसंख्यक समुदायों में असुरक्षा की भावना बढ़ सकती है, जबकि बहुसंख्यक समुदाय के भीतर राष्ट्रवादी भावनाओं को बल मिल सकता है।
क्या देखें
- संसद में आगे की बहस: यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या विपक्ष इस मुद्दे पर और अधिक स्पष्टीकरण मांगेगा या इसे आगामी बहसों में एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगा।
- सामाजिक और धार्मिक संगठनों की प्रतिक्रिया: मुस्लिम संगठनों और अन्य धार्मिक निकायों की प्रतिक्रियाएं इस विवाद को एक नया आयाम दे सकती हैं, जिससे इसका प्रभाव और बढ़ सकता है।
- मीडिया कवरेज और सार्वजनिक राय: मीडिया और सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को कैसे प्रस्तुत किया जाता है, यह सार्वजनिक धारणा को काफी प्रभावित करेगा।
- चुनावी रणनीति पर प्रभाव: यह देखना होगा कि आगामी चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपनी चुनावी रणनीति में कैसे शामिल करते हैं और यह मतदाताओं को कैसे प्रभावित करता है।
- सरकार का अगला कदम: क्या सरकार इस मुद्दे पर अपनी स्थिति को और स्पष्ट करेगी, या यह एक ऐसा मुद्दा बना रहेगा जिसका राजनीतिक लाभ के लिए समय-समय पर उपयोग किया जाएगा।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
'वंदे मातरम्' पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान भारतीय राजनीति में राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय पहचान को लेकर जारी संघर्ष को दर्शाता है। यह मुद्दा, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों से ही संवेदनशील रहा है, आज भी राजनीतिक ध्रुवीकरण का एक उपकरण बना हुआ है। पीएम मोदी ने एक ऐतिहासिक बिंदु को उठाकर एक बार फिर इस बहस को केंद्रीय मंच पर ला दिया है, जिससे राजनीतिक दलों के बीच वैचारिक मतभेद खुलकर सामने आए हैं।
यह विवाद दर्शाता है कि भारत में राष्ट्रीय प्रतीकों का महत्व केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि समकालीन राजनीति में भी गहरा है। आने वाले समय में, यह बहस न केवल संसदीय कार्यवाही को प्रभावित करेगी, बल्कि व्यापक सामाजिक और राजनीतिक विमर्श को भी आकार देगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बयान से समाज में और ध्रुवीकरण होता है, या फिर यह राष्ट्रीय प्रतीकों को लेकर एक अधिक समावेशी और एकीकृत समझ विकसित करने की दिशा में नए संवाद को जन्म देता है।
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