बांग्लादेश में 'भारत विरोधी' भावनाओं को कौन भड़का रहा है?
हाल के दिनों में बांग्लादेश में 'भारत विरोधी' भावनाओं में वृद्धि देखी गई है, जिसने दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंधों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह एक जटिल मुद्दा है जिसके पीछे कई कारक काम कर रहे हैं, जिनमें राजनीतिक बयानबाजी, आर्थिक चिंताएं और क्षेत्रीय भू-राजनीतिक समीकरण शामिल हैं। यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर कौन या कौन से समूह इन भावनाओं को हवा दे रहे हैं और इसका भारत-बांग्लादेश संबंधों पर क्या असर पड़ सकता है।
बांग्लादेश में 'भारत विरोधी' भावनाओं को कौन भड़का रहा है?
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
ढाका, 20 अगस्त, 2024: बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाएं विभिन्न रूपों में प्रकट हो रही हैं, जिनमें सोशल मीडिया पर अभियान, सड़क पर विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक रैलियों में की गई बयानबाजी शामिल है। इन भावनाओं को भड़काने में मुख्य रूप से विपक्षी दल, धार्मिक समूह और कुछ अति राष्ट्रवादी संगठन शामिल हैं। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से हाल के आम चुनावों के बाद से तेज हुई है, जिसमें भारत पर सत्ताधारी अवामी लीग का समर्थन करने का आरोप लगा है।
इन समूहों द्वारा भारत के खिलाफ कई मुद्दों को उठाया जा रहा है, जिनमें सीमा विवाद, नदी जल बंटवारा (विशेषकर तीस्ता नदी), बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में कथित भारतीय हस्तक्षेप और आर्थिक असंतुलन शामिल हैं। विभिन्न शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में, खासकर चुनाव के समय, भारत के खिलाफ नारों और पोस्टरों के साथ प्रदर्शन देखे गए हैं। यह स्थिति दोनों मित्र देशों के लिए चिंता का विषय बन गई है।
बांग्लादेश में 'भारत विरोधी' भावनाओं को कौन भड़का रहा है? — प्रमुख बयान और संदर्भ
बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाओं के उभार के पीछे कई प्रमुख कारक और समूह जिम्मेदार हैं। इनमें सबसे पहले विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और उसके सहयोगी, विशेषकर जमात-ए-इस्लामी, आते हैं। इन पार्टियों ने ऐतिहासिक रूप से भारत को अवामी लीग सरकार का समर्थन करने और बांग्लादेश के हितों को कमजोर करने का आरोप लगाया है। वे भारत पर बांग्लादेश के राजनीतिक और आर्थिक मामलों में अत्यधिक हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते हैं, जिससे देश की संप्रभुता को खतरा पैदा होता है।
हाल ही में संपन्न हुए आम चुनावों के दौरान, बीएनपी ने चुनाव का बहिष्कार किया और आरोप लगाया कि भारत ने शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार का समर्थन करके अलोकतांत्रिक प्रक्रिया को वैधता प्रदान की। इस दौरान सोशल मीडिया पर 'इंडिया आउट' जैसे हैशटैग ट्रेंड करते देखे गए, जिनमें भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान किया गया था। ये अभियान अक्सर इस धारणा से प्रेरित होते हैं कि भारत बांग्लादेश के आर्थिक संसाधनों का शोषण कर रहा है और उसके उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार बन गया है।
इसके अलावा, जल बंटवारा विवाद, खासकर तीस्ता नदी के पानी को लेकर लंबे समय से चला आ रहा गतिरोध, भारत विरोधी भावना को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बांग्लादेश में यह धारणा प्रबल है कि भारत पर्याप्त जल साझा नहीं करता, जिससे बांग्लादेश के कृषि क्षेत्र और पर्यावरण को नुकसान होता है। सीमा पर गोलीबारी की घटनाएं और भारतीय सीमा सुरक्षा बल (BSF) द्वारा बांग्लादेशी नागरिकों की कथित हत्याएं भी आक्रोश का कारण बनती हैं। यह मुद्दा राष्ट्रवादी समूहों द्वारा अक्सर उछाला जाता है ताकि भारत विरोधी भावनाओं को तीव्र किया जा सके।
धार्मिक और इस्लामी समूह भी भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। भारत में कथित मुस्लिम विरोधी नीतियों (जैसे नागरिकता संशोधन अधिनियम - CAA और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर - NRC) को लेकर बांग्लादेश में अक्सर विरोध प्रदर्शन होते हैं। ये समूह भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठाते हैं और इसे बांग्लादेश के मुस्लिम बहुल समाज के लिए खतरा बताते हैं। कुछ चरमपंथी तत्वों द्वारा भारत को 'हिंदू राष्ट्र' के रूप में चित्रित कर बांग्लादेश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने का प्रयास भी किया जाता है।
सोशल मीडिया और विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी इन भावनाओं को फैलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अज्ञात अकाउंट्स और फेक न्यूज वेबसाइट्स अक्सर भारत विरोधी प्रोपेगंडा फैलाते हैं, जिसमें तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है। ये डिजिटल प्लेटफॉर्म तेजी से गलत सूचनाओं को फैलाकर जनता की राय को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं, जिससे भारत के प्रति नकारात्मक धारणाओं को बल मिलता है।
पार्टियों की प्रतिक्रिया
बांग्लादेश में सत्ताधारी अवामी लीग सरकार ने 'भारत विरोधी' भावनाओं के उभार पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। सरकार का मानना है कि ये भावनाएं मुख्य रूप से विपक्षी दलों, विशेष रूप से बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए फैलाई जा रही हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके मंत्रियों ने कई मौकों पर भारत के साथ मजबूत संबंधों के महत्व पर जोर दिया है, यह बताते हुए कि भारत ने 1971 के मुक्ति संग्राम में बांग्लादेश का समर्थन किया था और दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध गहरे हैं। अवामी लीग के नेताओं ने इन भावनाओं को 'देशद्रोह' और 'बांग्लादेश की प्रगति को बाधित करने का प्रयास' भी करार दिया है।
वहीं, मुख्य विपक्षी दल बीएनपी ने भारत विरोधी भावनाओं को जनता के 'स्वाभाविक आक्रोश' के रूप में चित्रित किया है। बीएनपी के नेताओं ने आरोप लगाया है कि भारत अवामी लीग सरकार का समर्थन करके बांग्लादेश के लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर रहा है। उन्होंने अक्सर भारत को देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने और अवामी लीग को सत्ता में बनाए रखने का आरोप लगाया है। बीएनपी ने दावा किया है कि 'इंडिया आउट' जैसे अभियान सरकार की भारत समर्थक नीतियों से परेशान आम जनता की अभिव्यक्ति हैं, न कि किसी पार्टी विशेष द्वारा भड़काए गए हैं।
जमात-ए-इस्लामी और अन्य इस्लामी समूह खुले तौर पर भारत की नीतियों और भारत-बांग्लादेश संबंधों पर सवाल उठाते रहे हैं। वे भारत को एक 'हिंदू राष्ट्र' के रूप में देखते हैं जो बांग्लादेश के इस्लामी पहचान के लिए खतरा है। इन समूहों का लक्ष्य भारत विरोधी भावनाओं को धार्मिक आधार पर भड़काना होता है, जिससे वे अपने राजनीतिक और धार्मिक एजेंडे को आगे बढ़ा सकें। इन प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि भारत विरोधी भावनाएं बांग्लादेश की आंतरिक राजनीतिक खींचतान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई हैं।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
बांग्लादेश में बढ़ती भारत विरोधी भावनाएं केवल द्विपक्षीय संबंधों के लिए ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीति के लिए भी गंभीर मायने रखती हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच मजबूत संबंध क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं, और इन भावनाओं का उभार इस स्थिरता को कमजोर कर सकता है। भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने वाले समूह अक्सर इस तथ्य का फायदा उठाते हैं कि भारत एक बड़ा पड़ोसी है, और 'बड़े भाई' की धारणा अक्सर छोटे देशों में राष्ट्रवादी भावनाओं को जन्म देती है।
चीन की बढ़ती उपस्थिति भी इस पूरे परिदृश्य को जटिल बनाती है। चीन बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश कर रहा है, और कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन परोक्ष रूप से भारत विरोधी भावनाओं को बढ़ावा दे रहा है ताकि वह इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा सके। भारत की 'पड़ोसी पहले' की नीति के लिए यह एक चुनौती है, क्योंकि बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाएं बढ़ने से चीन को अपने पैर पसारने का और मौका मिल सकता है।
आंतरिक रूप से, ये भावनाएं बांग्लादेश के राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ाती हैं। अवामी लीग को 'भारत समर्थक' और बीएनपी को 'भारत विरोधी' के रूप में देखा जाना, देश के राजनीतिक संवाद को और अधिक विभाजित करता है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए हानिकारक हो सकता है, क्योंकि राजनीतिक दल वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय भावनात्मक और राष्ट्रवादी भावनाओं को भुनाने में लग जाते हैं। इससे बांग्लादेश में सांप्रदायिक सद्भाव भी प्रभावित हो सकता है, क्योंकि भारत विरोधी भावनाएं अक्सर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ पूर्वाग्रह को बढ़ा सकती हैं।
यह स्थिति भारत के लिए भी एक कूटनीतिक चुनौती पेश करती है। भारत को बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना होगा, यह सुनिश्चित करते हुए कि वह बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप न लगे, जबकि एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में अपनी स्थिति भी बनाए रखे। विश्वास की कमी और गलत सूचनाओं का प्रसार दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों को कमजोर कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
क्या देखें
- बांग्लादेश सरकार की प्रतिक्रिया: शेख हसीना सरकार इन भारत विरोधी भावनाओं को कैसे नियंत्रित करती है? क्या वे कोई विशेष कदम उठाते हैं या इसे विपक्षी प्रचार के रूप में खारिज करते हैं।
- भारत की कूटनीति: भारत इन बढ़ती भावनाओं को दूर करने के लिए कौन से कूटनीतिक उपाय अपनाता है? क्या कोई उच्च स्तरीय वार्ता या विश्वास बहाली के प्रयास किए जाएंगे।
- चीन की भूमिका: बांग्लादेश में चीन के आर्थिक और रणनीतिक निवेश के साथ-साथ भारत विरोधी भावनाओं के बीच क्या कोई संबंध उभरता है।
- सोशल मीडिया विनियमन: बांग्लादेश सरकार सोशल मीडिया पर फैलने वाली गलत सूचनाओं और भारत विरोधी प्रोपेगंडा को रोकने के लिए क्या कदम उठाती है।
- नदी जल बंटवारा: तीस्ता जल बंटवारे जैसे लंबित द्विपक्षीय मुद्दों पर क्या कोई प्रगति होती है, जो बांग्लादेश में भारत विरोधी भावना को कम करने में मदद कर सकती है।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
बांग्लादेश में 'भारत विरोधी' भावनाओं का उभार एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है जिसके पीछे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और भू-राजनीतिक कारक काम कर रहे हैं। इन भावनाओं को भड़काने में विपक्षी दल, धार्मिक समूह और कुछ अति राष्ट्रवादी तत्वों की भूमिका स्पष्ट है, जो भारत पर कथित हस्तक्षेप और आर्थिक शोषण का आरोप लगाते हैं। यह स्थिति न केवल भारत-बांग्लादेश संबंधों के लिए, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी चिंता का विषय है।
भविष्य में, दोनों देशों को इस संवेदनशील मुद्दे को सावधानी से निपटना होगा। भारत को अपनी 'पड़ोसी पहले' की नीति को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने और बांग्लादेश के साथ विश्वास बहाली के उपायों को बढ़ावा देने की आवश्यकता होगी। बांग्लादेश सरकार को भी इन भावनाओं को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने वाले तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि गलत सूचनाओं का प्रसार न हो। यदि इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान नहीं किया जाता है, तो यह क्षेत्रीय सहयोग और सुरक्षा के लिए गंभीर निहितार्थ पैदा कर सकता है।
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