US ने कहा- अब ट्रेड डील पर भारत दे रहा सबसे अच्छा ऑफर, लेकिन मामला किसानों का है!
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक महत्वाकांक्षी व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के प्रयास लंबे समय से चल रहे हैं। हाल ही में, अमेरिकी अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि इस डील को लेकर भारत ने अब तक का 'सबसे अच्छा ऑफर' दिया है। हालाँकि, इस सकारात्मक प्रगति के बावजूद, एक महत्वपूर्ण बाधा अभी भी बनी हुई है: भारतीय किसानों से जुड़े मुद्दे और कृषि उत्पादों पर टैरिफ। यह गतिरोध दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की राह में एक चुनौती बना हुआ है, जबकि रणनीतिक साझेदारी लगातार मजबूत हो रही है।
US ने कहा- अब ट्रेड डील पर भारत दे रहा सबसे अच्छा ऑफर, लेकिन मामला किसानों का है!
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
वॉशिंगटन/नई दिल्ली, 15 जुलाई, 2024: अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) के कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने हाल ही में एक बयान में कहा कि भारत ने द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए अब तक का सबसे अनुकूल प्रस्ताव पेश किया है। यह बयान दोनों देशों के बीच चल रही व्यापार वार्ता के लिए एक महत्वपूर्ण सकारात्मक संकेत है, जो कई वर्षों से विभिन्न मुद्दों पर अटकी हुई है। विशेष रूप से, अमेरिकी पक्ष ने भारत के बाजार में अमेरिकी कृषि उत्पादों, जैसे डेयरी, बादाम, सेब और पोल्ट्री के लिए अधिक पहुंच की मांग की है।
इस डील का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार बाधाओं को कम करना, टैरिफ को युक्तिसंगत बनाना और निवेश के माहौल को बेहतर बनाना है। हालांकि, भारतीय पक्ष ने लगातार अपने किसानों के हितों की रक्षा पर जोर दिया है। भारत सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना प्राथमिकता है कि कोई भी व्यापार समझौता देश के विशाल कृषि क्षेत्र और लाखों किसानों की आजीविका को प्रतिकूल रूप से प्रभावित न करे, यही कारण है कि कृषि एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है।
US ने कहा- अब ट्रेड डील पर भारत दे रहा सबसे अच्छा ऑफर, लेकिन मामला किसानों का है! — प्रमुख बयान और संदर्भ
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधिमंडल ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया है कि भारत ने कुछ औद्योगिक उत्पादों पर टैरिफ कम करने और सेवाओं क्षेत्र में अधिक पहुंच प्रदान करने सहित कई मोर्चों पर महत्वपूर्ण रियायतें देने की पेशकश की है। इन रियायतों को 'सबसे अच्छा ऑफर' करार दिया गया है, जो दर्शाता है कि भारत इस व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के लिए गंभीर है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकीकृत करने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने की व्यापक रणनीति का हिस्सा भी है।
हालांकि, अमेरिकी अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि प्रमुख चिंता अभी भी कृषि क्षेत्र को लेकर है। अमेरिका विशेष रूप से अपने कृषि उत्पादों जैसे डेयरी, उच्च गुणवत्ता वाले बादाम, सेब और पोल्ट्री उत्पादों के लिए भारत के बाजार में कम शुल्क और आसान पहुंच चाहता है। वर्तमान में, भारत इन उत्पादों पर अपेक्षाकृत उच्च आयात शुल्क लगाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उत्पादकों को सस्ती आयातित वस्तुओं से बचाना है। यह शुल्क भारतीय किसानों की आजीविका की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
भारत सरकार ने कई मौकों पर यह स्पष्ट किया है कि वह कृषि क्षेत्र में कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएगी, जिससे देश के लाखों छोटे और सीमांत किसानों के हित प्रभावित हों। भारत की खाद्य सुरक्षा नीति और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करने की प्रतिबद्धता ऐसे कारक हैं जो किसी भी कृषि-संबंधी समझौते में एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं। भारत का रुख है कि वह अपनी खाद्य सुरक्षा और कृषि सब्सिडी कार्यक्रमों पर समझौता नहीं कर सकता, क्योंकि ये करोड़ों लोगों की आजीविका से जुड़े हुए हैं।
पहले भी दोनों देशों के बीच कुछ व्यापार मुद्दों का समाधान हुआ है, जैसे कि कुछ स्टील और एल्यूमीनियम उत्पादों पर अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ को वापस लेना और भारत द्वारा कुछ अमेरिकी कृषि उत्पादों पर प्रतिशोधात्मक शुल्क हटाना। इन कदमों ने संबंध सुधारने में मदद की है, लेकिन एक व्यापक व्यापार समझौता अभी भी कृषि क्षेत्र में गहरे मतभेदों के कारण अटका हुआ है। ये मतभेद सिर्फ टैरिफ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सब्सिडी और सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (SPS) उपायों जैसे मुद्दों को भी छूते हैं, जो कृषि व्यापार को और जटिल बनाते हैं।
प्रभाव और प्रतिक्रिया
अमेरिकी कृषि उद्योग लॉबी ने भारत से कृषि आयात शुल्क में और कमी करने का लगातार आग्रह किया है। उनका तर्क है कि भारत का बड़ा उपभोक्ता बाजार अमेरिकी किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है, जिससे दोनों देशों को लाभ होगा। अमेरिकी डेयरी उद्योग और बादाम उत्पादकों ने विशेष रूप से भारतीय बाजार तक बेहतर पहुंच की मांग की है, क्योंकि वे भारत में अपने उत्पादों की उच्च मांग देखते हैं और इसे एक महत्वपूर्ण निर्यात बाजार के रूप में विकसित करना चाहते हैं। उनका मानना है कि वर्तमान शुल्क उनके उत्पादों को भारतीय उपभोक्ताओं तक पहुंचने से रोकते हैं।
हालांकि, भारत में किसान संघों और कृषि विशेषज्ञों ने किसी भी ऐसे व्यापार समझौते का कड़ा विरोध किया है जो घरेलू कृषि क्षेत्र को कमजोर कर सकता है। वे चिंतित हैं कि अमेरिकी कृषि उत्पादों का सस्ता आयात भारतीय किसानों के लिए अनुचित प्रतिस्पर्धा पैदा करेगा, जिससे उनकी आय प्रभावित होगी। भारत में पहले से ही कई किसानों को अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पाता, ऐसे में आयात शुल्क में कमी उनके लिए एक और बड़ा झटका हो सकती है। विभिन्न किसान संगठन और राजनीतिक दल इस मुद्दे पर सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं।
विश्व व्यापार संगठन (WTO) के मंच पर भी कृषि सब्सिडी और बाजार पहुंच जैसे मुद्दे लगातार बहस का विषय रहे हैं। भारत और अमेरिका दोनों ही WTO में अपने-अपने कृषि हितों का बचाव करते रहे हैं। विकासशील देशों के समूह में भारत हमेशा से अपने किसानों के लिए विशेष और विभेदक व्यवहार (Special and Differential Treatment) की मांग करता रहा है, जबकि अमेरिका जैसे विकसित देश कृषि बाजारों को अधिक उदार बनाने पर जोर देते हैं। यह डील WTO में चल रही व्यापक चर्चाओं को भी प्रभावित कर सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत और अमेरिका इस व्यापार गतिरोध को हल करने में सफल होते हैं, तो यह वैश्विक व्यापार प्रणाली के लिए एक सकारात्मक संकेत होगा। यह दिखाता है कि दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जटिल मुद्दों पर भी समझौता कर सकती हैं। हालांकि, उन्हें यह भी पता है कि किसानों का मुद्दा भारत में बहुत संवेदनशील है और सरकार के लिए राजनीतिक रूप से कोई भी बड़ा समझौता करना मुश्किल होगा, खासकर आगामी चुनावों को देखते हुए।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
भारत के लिए, इस व्यापार समझौते पर कृषि क्षेत्र में कोई भी बड़ी रियायत देना एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है। भारत में कृषि एक बहुत बड़ा वोट बैंक है, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को रोजगार देती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को किसानों के हित सुरक्षित रखने और उनकी आय बढ़ाने के लिए लगातार दबाव का सामना करना पड़ता है। ऐसे में, अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए बाजार खोलने से घरेलू किसानों में असंतोष बढ़ सकता है, जिसका राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
दूसरी ओर, अमेरिका के लिए भी अपने कृषि लॉबी के हितों को संतुष्ट करना महत्वपूर्ण है। अमेरिकी कृषि उत्पादक व्यापार समझौतों में अधिक बाजार पहुंच की लगातार वकालत करते रहे हैं। वर्तमान अमेरिकी प्रशासन के लिए, भारत जैसे बड़े विकासशील बाजार में अपने कृषि उत्पादों के लिए नए दरवाजे खोलना एक महत्वपूर्ण व्यापारिक जीत होगी, जो घरेलू स्तर पर मतदाताओं को प्रभावित कर सकती है। यह विशेष रूप से अमेरिका में आने वाले राष्ट्रपति चुनावों को देखते हुए महत्वपूर्ण है, जहां कृषि राज्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत-अमेरिका संबंध अब केवल व्यापार तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि रक्षा, प्रौद्योगिकी, भू-राजनीतिक सहयोग और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में भी गहराते जा रहे हैं। एक व्यापक व्यापार समझौता दोनों देशों के बीच संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जा सकता है, जिससे वे चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने और एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने में अधिक प्रभावी हो सकें। हालांकि, व्यापारिक मुद्दों पर विवाद रणनीतिक साझेदारी में दरार पैदा कर सकते हैं।
इस डील के राजनीतिक मायने दोनों देशों के लिए गहरे हैं। भारत के लिए यह अपनी आर्थिक स्वतंत्रता बनाए रखने और अपने सबसे कमजोर वर्ग की रक्षा करने का सवाल है, जबकि अमेरिका के लिए यह अपने निर्यात बाजार का विस्तार करने और भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने का अवसर है। दोनों देशों को एक ऐसे समाधान की तलाश करनी होगी जो उनके घरेलू हितों को संतुलित करे और एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी के लक्ष्यों को भी पूरा करे। यह एक जटिल संतुलन कार्य है, जिसके लिए दूरदर्शिता और लचीलेपन की आवश्यकता होगी।
क्या देखें
- भारत का अगला प्रस्ताव: क्या भारत कृषि उत्पादों पर टैरिफ कम करने के लिए कोई नया, रचनात्मक प्रस्ताव पेश करता है जो घरेलू किसानों को नुकसान पहुँचाए बिना अमेरिकी चिंताओं को दूर कर सके।
- अमेरिकी लचीलापन: अमेरिका कृषि क्षेत्र में अपनी मांगों पर कितना लचीला रुख अपनाता है, और क्या वह भारत की खाद्य सुरक्षा और किसान आजीविका की चिंताओं को समायोजित करने के लिए तैयार है।
- घरेलू राजनीतिक दबाव: दोनों देशों में घरेलू राजनीतिक दबाव, विशेष रूप से आगामी चुनावों को देखते हुए, व्यापार वार्ता को कैसे प्रभावित करता है।
- अन्य क्षेत्रों में प्रगति: क्या दोनों देश सेवाओं, डिजिटल व्यापार या निवेश जैसे अन्य क्षेत्रों में प्रगति कर सकते हैं, जिससे समग्र डील को आगे बढ़ाने में मदद मिल सके।
- डब्ल्यूटीओ की भूमिका: यदि द्विपक्षीय वार्ता सफल नहीं होती है, तो क्या यह मुद्दा विश्व व्यापार संगठन के मंच पर फिर से उठाया जाएगा, और इसका वैश्विक व्यापार नियमों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते का भविष्य कृषि क्षेत्र में गतिरोध को सुलझाने की उनकी क्षमता पर निर्भर करता है। अमेरिका द्वारा भारत के प्रस्ताव को 'सबसे अच्छा' करार देना निश्चित रूप से एक सकारात्मक कदम है, लेकिन जब तक किसानों के मुद्दे पर आम सहमति नहीं बनती, तब तक यह डील अधूरी रहेगी। भारत के लिए अपने किसानों के हितों की रक्षा करना एक राजनीतिक अनिवार्यता है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
आगे की संभावनाओं में यह देखा जाएगा कि क्या दोनों देश एक ऐसा मध्य मार्ग खोज पाते हैं जो दोनों पक्षों की चिंताओं को दूर कर सके। इसमें कृषि में चरणबद्ध उदारीकरण, विशिष्ट उत्पादों पर सीमित रियायतें, या अन्य व्यापार लाभों के साथ कृषि मुद्दों को जोड़ना शामिल हो सकता है। यह स्पष्ट है कि रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए व्यापार संबंधों में सुधार महत्वपूर्ण है, और इस डील को पूरा करने से दोनों राष्ट्रों को आर्थिक और भू-राजनीतिक रूप से भारी लाभ होगा, बशर्ते किसानों के हितों से कोई समझौता न हो।
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