पीएम नरेंद्र मोदी का जॉर्डन दौरा क्यों अहम है?
भारत अपनी विदेश नीति में सक्रियता और वैश्विक जुड़ाव को लगातार बढ़ा रहा है। इसी कड़ी में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जॉर्डन का बहुप्रतीक्षित दौरा मध्य पूर्व के भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत की बढ़ती भूमिका को रेखांकित करता है। यह यात्रा न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, बल्कि यह क्षेत्र में शांति, स्थिरता और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने की भारत की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
पीएम नरेंद्र मोदी का जॉर्डन दौरा
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
नई दिल्ली, 12 नवंबर, 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 नवंबर, 2024 को जॉर्डन की अपनी पहली आधिकारिक राजकीय यात्रा पर रवाना हुए। यह यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से की गई, जिसमें कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने जॉर्डन के महामहिम किंग अब्दुल्ला द्वितीय इब्न अल-हुसैन से मुलाकात की और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।
इस दौरे में उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी शामिल था, जिसमें भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारी और प्रमुख व्यापारिक नेता मौजूद थे। बैठकों के दौरान व्यापार, निवेश, रक्षा, ऊर्जा, कृषि और लोगों से लोगों के बीच संपर्क जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया। यह यात्रा मध्य पूर्व में भारत की ‘पश्चिम की ओर देखो’ नीति को और गति प्रदान करेगी।
पीएम नरेंद्र मोदी का जॉर्डन दौरा क्यों अहम है? — प्रमुख बयान और संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जॉर्डन दौरा कई कारणों से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, जॉर्डन एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश है जो इज़रायल, सीरिया, इराक और सऊदी अरब जैसे देशों से घिरा हुआ है, जो इसे मध्य पूर्व की अस्थिरता के बीच स्थिरता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनाता है। भारत के लिए इस क्षेत्र में एक विश्वसनीय और स्थिर भागीदार के साथ मजबूत संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है ताकि क्षेत्र में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, खासकर बढ़ती भू-राजनीतिक जटिलताओं के मद्देनजर।
दूसरा, यह यात्रा आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए अपार संभावनाएं प्रस्तुत करती है। वर्तमान में, भारत और जॉर्डन के बीच द्विपक्षीय व्यापार अपेक्षाकृत कम है, लेकिन इसमें वृद्धि की काफी गुंजाइश है। भारत जॉर्डन से पोटाश और फॉस्फेट जैसे उर्वरकों का एक प्रमुख आयातक है, जो भारतीय कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस यात्रा के दौरान कृषि उत्पादों, फार्मास्यूटिकल्स, सूचना प्रौद्योगिकी और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में नए निवेश और व्यापार समझौतों पर चर्चा हुई, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को लाभ होगा।
तीसरा, क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग इस दौरे का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। मध्य पूर्व में चरमपंथ और आतंकवाद की बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए, भारत और जॉर्डन दोनों के लिए इन खतरों से निपटने के लिए मिलकर काम करना आवश्यक है। दोनों देशों ने खुफिया जानकारी साझा करने, सुरक्षा सहयोग बढ़ाने और आतंकवाद के वित्तपोषण पर रोक लगाने जैसे उपायों पर विचार-विमर्श किया। किंग अब्दुल्ला द्वितीय आतंकवाद के खिलाफ एक मुखर आवाज रहे हैं, और उनके साथ पीएम मोदी की मुलाकात इन साझा चिंताओं को दूर करने में सहायक होगी।
चौथा, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध भी इस यात्रा को विशेष बनाते हैं। जॉर्डन में कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं, जो भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं। दोनों देश सभ्यतागत संबंधों को साझा करते हैं, और पर्यटन को बढ़ावा देने से लोगों से लोगों के बीच संपर्क और सांस्कृतिक समझ बढ़ेगी। इस यात्रा ने शिक्षा, कला और संस्कृति के क्षेत्रों में आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया।
पांचवां, यह दौरा भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। हालांकि जॉर्डन एक प्रमुख तेल उत्पादक नहीं है, लेकिन इसकी रणनीतिक स्थिति इसे ऊर्जा पारगमन के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाती है। क्षेत्र के साथ मजबूत संबंध भारत को अपनी ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं को विविधतापूर्ण बनाने और ऊर्जा बाजारों में स्थिरता बनाए रखने में मदद कर सकते हैं। यह भारत को मध्य पूर्व में अपने पदचिह्न को मजबूत करने और पश्चिमी एशिया में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने का अवसर प्रदान करता है।
पार्टियों की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जॉर्डन दौरे पर भारत के राजनीतिक गलियारों में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस यात्रा को भारत की बढ़ती वैश्विक कूटनीति का एक और उदाहरण बताया। भाजपा नेताओं ने जोर दिया कि यह दौरा मध्य पूर्व में भारत के रणनीतिक हितों को मजबूत करेगा और क्षेत्रीय स्थिरता में भारत के योगदान को दर्शाएगा।
वहीं, विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस और कुछ अन्य क्षेत्रीय पार्टियों ने यात्रा के परिणामों पर अधिक स्पष्टता की मांग की। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह बताए कि इस दौरे से भारत को वास्तविक रूप से क्या आर्थिक और रणनीतिक लाभ मिलेंगे। कुछ विपक्षी नेताओं ने इज़रायल-फिलिस्तीन जैसे संवेदनशील क्षेत्रीय मुद्दों पर भारत के रुख को लेकर भी सवाल उठाए, यह मांग करते हुए कि भारत को अपने पारंपरिक रुख पर कायम रहना चाहिए। हालांकि, अधिकांश दलों ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूत करने के महत्व को स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने सरकार को राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखने की सलाह दी।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
पीएम मोदी का जॉर्डन दौरा भारत की 'पड़ोसी पहले' और 'पश्चिम की ओर देखो' नीतियों के बीच एक महत्वपूर्ण सेतु का काम करता है। यह दिखाता है कि भारत अब केवल आर्थिक अवसरों पर ही ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा है, बल्कि मध्य पूर्व में भू-रणनीतिक स्थिरता में भी सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है। जॉर्डन, अपने संवैधानिक राजतंत्र और अपेक्षाकृत स्थिर राजनीतिक व्यवस्था के कारण, भारत के लिए एक आदर्श भागीदार है जो क्षेत्र में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाता है।
यह यात्रा भारत को ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं और व्यापारिक मार्गों के अपने नेटवर्क में विविधता लाने में मदद कर सकती है। मध्य पूर्व के अस्थिर वातावरण को देखते हुए, जॉर्डन के साथ मजबूत संबंध भारत को अनिश्चितताओं के बीच लचीलापन प्रदान कर सकते हैं। इसके अलावा, बहुपक्षीय मंचों पर भारत और जॉर्डन के बीच सहयोग को बढ़ावा देने से वैश्विक चुनौतियों, जैसे जलवायु परिवर्तन और सतत विकास पर साझा दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा। यह भारत की बढ़ती वैश्विक शक्ति के अनुरूप है, जहां वह केवल एक उपभोगकर्ता के बजाय एक समाधान प्रदाता और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक योगदानकर्ता के रूप में उभर रहा है।
इस दौरे के माध्यम से, भारत ने यह संदेश भी दिया है कि वह मध्य पूर्व के सभी देशों के साथ संबंध बनाए रखना चाहता है, न कि केवल कुछ चुनिंदा देशों के साथ। यह एक संतुलित विदेश नीति का संकेत है जो विभिन्न क्षेत्रीय शक्तियों के बीच अपने हितों को साधने में सक्षम है। जॉर्डन के साथ गहरा सहयोग भारत को इस क्षेत्र में अपनी सॉफ्ट पावर बढ़ाने और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से सद्भावना बनाने का अवसर भी देता है, जो दीर्घकालिक रणनीतिक संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है।
क्या देखें
- संयुक्त बयान और समझौतों का विवरण: दौरे के बाद जारी होने वाले संयुक्त बयान और हस्ताक्षरित समझौतों का बारीकी से अध्ययन करना महत्वपूर्ण होगा ताकि विशिष्ट क्षेत्रों में सहयोग की गहराई को समझा जा सके।
- आर्थिक और व्यापारिक परिणाम: क्या इस यात्रा से नए व्यापारिक सौदे, निवेश या भारतीय कंपनियों के लिए जॉर्डन में अवसर खुलते हैं, यह देखना अहम होगा, खासकर उर्वरक, आईटी और फार्मा क्षेत्रों में।
- क्षेत्रीय स्थिरता पर भारत का रुख: पीएम मोदी ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष और रेड सी में समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर क्या रुख अपनाया, यह भारत की मध्य पूर्व नीति के लिए महत्वपूर्ण है।
- रक्षा और सुरक्षा सहयोग का विस्तार: आतंकवाद विरोधी प्रयासों और खुफिया जानकारी साझा करने के संबंध में यदि कोई ठोस योजना या सहयोग के नए मार्ग सामने आते हैं, तो यह दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा।
- भविष्य में उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान: क्या इस यात्रा के बाद जॉर्डन से भारत में उच्च-स्तरीय यात्राओं का मार्ग प्रशस्त होता है, और इससे द्विपक्षीय संबंध कितनी गति पकड़ते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जॉर्डन दौरा भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। यह न केवल जॉर्डन के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि यह मध्य पूर्व में भारत की भू-रणनीतिक उपस्थिति और प्रभाव को भी बढ़ाएगा। यह यात्रा दिखाती है कि भारत क्षेत्र में शांति और आर्थिक विकास के लिए एक सक्रिय और जिम्मेदार भागीदार बनने के लिए उत्सुक है।
आगे चलकर, इस यात्रा के दीर्घकालिक प्रभाव दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और सुरक्षा सहयोग में वृद्धि के रूप में सामने आ सकते हैं। जॉर्डन के साथ एक मजबूत साझेदारी भारत को ऊर्जा सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी प्रयासों और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में मदद करेगी। यह दौरा भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने और पश्चिमी एशिया में एक रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है, जिससे भविष्य में और अधिक गहरे राजनयिक और आर्थिक संबंध स्थापित होने की संभावना है।
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