डोनाल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति और भारत-अमेरिकी व्यापार संबंध: क्या चावल पर लगेगा नया टैरिफ़?
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और भू-राजनीति के गलियारों में एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप की संभावित वापसी और उनकी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। उनके पिछले कार्यकाल में व्यापार शुल्कों (टैरिफ़) को एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति ने वैश्विक व्यापार परिदृश्य को काफी प्रभावित किया था। अब, यह सवाल उठ रहा है कि क्या एक और कार्यकाल में ट्रंप भारत जैसे देशों पर, विशेषकर कृषि उत्पादों जैसे चावल पर, नए टैरिफ़ लगाकर दबाव बढ़ाएंगे?
डोनाल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति और भारत-अमेरिकी व्यापार संबंध: क्या चावल पर लगेगा नया टैरिफ़?
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
नई दिल्ली, 10 जून, 2024: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने अपने पहले कार्यकाल में 'अमेरिका फर्स्ट' के नारे के तहत कई देशों पर टैरिफ़ लगाए थे, ने फिर से राष्ट्रपति पद की दौड़ में वापसी की है। उनके अभियान के दौरान, व्यापार असंतुलन और आयात शुल्क जैसे मुद्दे लगातार उनके एजेंडे में बने हुए हैं। इन्हीं चर्चाओं के बीच, भारत जैसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर संभावित नए व्यापारिक प्रतिबंधों की आशंकाएं बढ़ रही हैं।
ट्रंप प्रशासन की पिछली नीतियों में भारत को जनरलाइज़्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेस (GSP) से बाहर निकालना और कुछ भारतीय उत्पादों पर टैरिफ़ लगाना शामिल था। अब, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कृषि उत्पादों, विशेष रूप से चावल, जो भारत का एक प्रमुख निर्यात उत्पाद है, को भी निशाना बनाया जा सकता है। यह संभावना भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधों के लिए एक नई चुनौती पेश कर सकती है।
डोनाल्ड ट्रंप भारत पर क्या चावल के बहाने नया टैरिफ़ लगाएंगे? — प्रमुख बयान और संदर्भ
डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीति का मूल सिद्धांत अमेरिकी उद्योगों और नौकरियों की रक्षा करना रहा है, जिसके लिए वे अक्सर आयातित वस्तुओं पर टैरिफ़ लगाने की वकालत करते हैं। उनका मानना है कि अन्य देशों के साथ बड़े व्यापार घाटे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कमजोर करते हैं और 'अनुचित' व्यापार प्रथाओं का परिणाम हैं। ट्रंप ने कई बार खुले तौर पर भारत पर 'उच्च टैरिफ़' लगाने का आरोप लगाया है, खासकर हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों जैसे उत्पादों के आयात पर।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है, जो वैश्विक चावल व्यापार में लगभग 40% हिस्सेदारी रखता है। 2023-24 में, भारत ने 18 मिलियन टन से अधिक चावल का निर्यात किया। ऐसे में, यदि ट्रंप प्रशासन कृषि उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करता है, तो चावल एक स्वाभाविक लक्ष्य हो सकता है, विशेष रूप से यदि वे अमेरिकी किसानों को लाभ पहुंचाना चाहते हैं या भारत से व्यापार रियायतें प्राप्त करना चाहते हैं। ट्रंप की बयानबाजी अक्सर उन उत्पादों को लक्षित करती है जहां वे 'पारस्परिकता' (reciprocity) की कमी महसूस करते हैं, यानी यदि अमेरिका किसी देश पर कम शुल्क लगाता है, तो वह देश भी अमेरिकी उत्पादों पर कम शुल्क लगाए।
उनके अभियान के दौरान, ट्रंप ने संकेत दिया है कि वह एक बार फिर से 'सीमा शुल्क' (border tax) लगाने पर विचार कर सकते हैं, जो सभी आयातित वस्तुओं पर एक निश्चित प्रतिशत शुल्क होगा। इस तरह की व्यापक नीति भारत से आने वाले चावल सहित सभी उत्पादों को प्रभावित कर सकती है। यह केवल चावल तक ही सीमित नहीं होगा बल्कि अन्य भारतीय कृषि और विनिर्मित उत्पादों पर भी असर डालेगा।
यह स्थिति भू-राजनीतिक संबंधों के लिए भी मायने रखती है। भारत और अमेरिका ने हाल के वर्षों में अपनी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया है, जिसमें QUAD जैसे समूह भी शामिल हैं। व्यापार विवादों का पुनरुत्थान इस सहयोग में तनाव पैदा कर सकता है और दोनों देशों के बीच संबंधों की समग्र दिशा को प्रभावित कर सकता है। ट्रंप प्रशासन ने अतीत में भी व्यापार को एक भू-राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है, और यह संभावना भविष्य में भी बनी हुई है।
पार्टियों की प्रतिक्रिया
इस संभावित व्यापारिक तनाव पर भारत और अमेरिका दोनों में राजनीतिक प्रतिक्रियाएं अपेक्षित हैं। भारत में, सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी दल, दोनों ही किसानों के हितों की रक्षा पर जोर देंगे। भारतीय वाणिज्य मंत्रालय और विदेश मंत्रालय इस मुद्दे पर राजनयिक चैनलों के माध्यम से अमेरिका के साथ संवाद स्थापित करने की कोशिश करेंगे, ताकि किसी भी एकतरफा टैरिफ़ से बचा जा सके। भारतीय किसान संगठन भी अपनी चिंताओं को सामने रखेंगे, क्योंकि चावल के निर्यात पर टैरिफ़ का सीधा असर उनकी आजीविका पर पड़ेगा।
अमेरिका में, रिपब्लिकन पार्टी के भीतर डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक उनकी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का जोरदार समर्थन करेंगे। वे तर्क देंगे कि ये टैरिफ़ अमेरिकी किसानों और उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाएंगे और अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करेंगे। दूसरी ओर, डेमोक्रेटिक पार्टी और उसके नेता संभावित टैरिफ़ के नकारात्मक प्रभावों पर चिंता व्यक्त कर सकते हैं। वे तर्क देंगे कि टैरिफ़ से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ेंगी, अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित होंगी और अमेरिका के वैश्विक व्यापार संबंधों में अस्थिरता आएगी।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक संगठनों, जैसे विश्व व्यापार संगठन (WTO), की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी। यदि अमेरिका एकतरफा टैरिफ़ लगाता है, तो भारत WTO में शिकायत दर्ज कर सकता है। हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने अतीत में WTO के फैसलों की अनदेखी की है, जिससे इस मंच की प्रभावशीलता पर सवाल उठते रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से वे देश जो भारत से चावल का आयात करते हैं, भी इस संभावित व्यापार युद्ध के परिणामों पर कड़ी नज़र रखेंगे।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर चावल के बहाने नया टैरिफ़ लगाने की संभावना के कई गहरे आर्थिक और भू-राजनीतिक मायने हैं। आर्थिक रूप से, इसका सीधा असर भारतीय चावल निर्यातकों पर पड़ेगा, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है और निर्यात राजस्व में गिरावट आ सकती है। यह भारत के ग्रामीण अर्थव्यवस्था, विशेषकर उन राज्यों में जहां चावल एक प्रमुख फसल है, पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। इससे किसानों की आय प्रभावित होगी और कृषि क्षेत्र में अस्थिरता आ सकती है।
वैश्विक स्तर पर, यदि भारत के चावल निर्यात पर बाधा आती है, तो इससे अंतर्राष्ट्रीय चावल की कीमतें प्रभावित हो सकती हैं। चावल कई विकासशील देशों के लिए एक मुख्य खाद्य स्रोत है, और इसके दाम बढ़ने से खाद्य सुरक्षा की चिंताएं बढ़ सकती हैं। अमेरिका में, हालांकि इसका उद्देश्य घरेलू किसानों को लाभ पहुंचाना हो सकता है, लेकिन आयातित चावल पर शुल्क बढ़ने से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए खाद्य उत्पादों की लागत भी बढ़ सकती है।
भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से, व्यापार विवादों का पुनरुत्थान भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी पर दबाव डालेगा। हाल के वर्षों में दोनों देशों ने रक्षा, प्रौद्योगिकी और कूटनीति में गहरे संबंध स्थापित किए हैं, जिसमें चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए QUAD जैसे बहुपक्षीय मंच भी शामिल हैं। व्यापार संबंधी तनाव इन प्रयासों को कमजोर कर सकता है और द्विपक्षीय संबंधों में अविश्वास पैदा कर सकता है। ट्रंप का व्यापार के प्रति संरक्षणवादी रवैया अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली और WTO जैसे बहुपक्षीय संस्थानों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है। यह वैश्विक व्यापार व्यवस्था में अनिश्चितता और अस्थिरता को बढ़ा सकता है, जिससे अन्य देशों को भी व्यापार नीतियों की समीक्षा करने पर मजबूर होना पड़ सकता है।
क्या देखें
- डोनाल्ड ट्रंप के बयान: उनके आगामी चुनावी भाषणों और आर्थिक नीति से संबंधित बयानों पर कड़ी नज़र रखनी होगी, ताकि उनकी व्यापार रणनीति की दिशा का पता चल सके।
- अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) की गतिविधियां: अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि के कार्यालय से किसी भी औपचारिक जांच की शुरुआत या भारत के खिलाफ व्यापार कार्रवाई की घोषणा पर ध्यान देना होगा।
- भारत सरकार की राजनयिक प्रतिक्रिया: भारत सरकार, विशेषकर वाणिज्य और विदेश मंत्रालय द्वारा किए जाने वाले राजनयिक प्रयासों और किसी भी संभावित व्यापार विवाद से निपटने की उनकी रणनीति महत्वपूर्ण होगी।
- WTO में चर्चाएं: यदि टैरिफ़ लागू होते हैं, तो विश्व व्यापार संगठन (WTO) में इस मुद्दे पर होने वाली किसी भी चर्चा या भारत द्वारा संभावित शिकायत पर नजर रखनी होगी।
- बाजार और उद्योग प्रतिक्रिया: भारतीय चावल निर्यातकों, कृषि क्षेत्र के हितधारकों और अमेरिकी आयातकों की प्रतिक्रियाएं और उनके द्वारा की जाने वाली पैरवी भी स्थिति को प्रभावित कर सकती है।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
डोनाल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत भारत पर चावल के बहाने नए टैरिफ़ लगाने की संभावना, भले ही अभी अटकलें हों, एक वास्तविक चुनौती पेश करती है। यह न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है, बल्कि भारत और अमेरिका के बीच के समग्र रणनीतिक संबंधों पर भी दबाव डाल सकता है। भारत को इन संभावित परिदृश्यों के लिए तैयार रहना होगा और राजनयिक तथा आर्थिक स्तर पर मजबूत प्रतिक्रिया रणनीतियां बनानी होंगी।
आने वाले समय में, यह देखना दिलचस्प होगा कि यदि ट्रंप सत्ता में लौटते हैं, तो उनकी व्यापार नीतियां कितनी आक्रामक होंगी और भारत सहित अन्य देशों के साथ उनके व्यापारिक संबंध किस दिशा में जाएंगे। वैश्विक व्यापार व्यवस्था के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है, जहां संरक्षणवाद और बहुपक्षीय सहयोग के बीच का संतुलन एक बार फिर जांचा जाएगा। भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए एक सक्रिय और बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होगी।
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