नोटबंदी ने ऐसी तोड़ी कमर कि उबर नहीं पाए माओवादी, वित्तीय ढांचे को पहुंचा था गहरा आघात
भारत सरकार द्वारा 2016 में की गई नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था पर कई तरह के प्रभाव डाले, जिनमें से एक दूरगामी प्रभाव माओवादी और नक्सली संगठनों पर पड़ा। यह माना जाता है कि नोटबंदी ने इन समूहों की वित्तीय रीढ़ को इस कदर तोड़ दिया कि वे इससे कभी पूरी तरह उबर नहीं पाए। पुराने 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने के इस फैसले ने अवैध फंडिंग और काले धन पर आधारित उनके पूरे वित्तीय ढांचे को गहरा आघात पहुँचाया था, जिससे उनकी अभियानगत क्षमताओं और संगठन चलाने की शक्ति पर सीधा असर पड़ा।
नोटबंदी ने ऐसी तोड़ी कमर कि उबर नहीं पाए माओवादी, वित्तीय ढांचे को पहुंचा था गहरा आघात
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
दिल्ली, 8 नवंबर, 2016: भारत सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को 500 और 1000 रुपये के सभी पुराने नोटों को तत्काल प्रभाव से बंद करने की घोषणा की। इस ऐतिहासिक फैसले का मुख्य उद्देश्य काले धन, जाली मुद्रा और आतंकवाद के वित्तपोषण पर लगाम लगाना था। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि इसका एक महत्वपूर्ण लक्ष्य नक्सली और माओवादी संगठनों की वित्तीय आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करना भी था, जो मुख्य रूप से नकदी पर निर्भर थे।
नोटबंदी की घोषणा के तुरंत बाद, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में माओवादी संगठनों को भारी नकदी को बदलने या ठिकाने लगाने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। विभिन्न खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों की रिपोर्टों ने पुष्टि की कि इस कदम ने उनके द्वारा जबरन वसूली और लेवी के माध्यम से जमा की गई लाखों रुपये की नकदी को लगभग बेकार कर दिया। इस अचानक की गई कार्रवाई ने उन्हें अपनी गतिविधियों को वित्तपोषित करने और अपने कैडरों का समर्थन करने में अक्षम बना दिया।
नोटबंदी ने ऐसी तोड़ी कमर कि उबर नहीं पाए माओवादी, वित्तीय ढांचे को पहुंचा था गहरा आघात — प्रमुख बयान और संदर्भ
गृह मंत्रालय और विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों ने समय-समय पर इस बात पर जोर दिया है कि नोटबंदी माओवादियों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण रणनीतिक जीत थी। 2017 की शुरुआत में, तत्कालीन गृह सचिव ने बयान दिया था कि नोटबंदी ने माओवादियों की वित्तीय शक्ति को लगभग 80% तक कम कर दिया है। उन्होंने बताया कि माओवादियों ने पुराने नोटों को बदलने के लिए हरसंभव प्रयास किए, लेकिन वे बैंकों की कड़ी निगरानी और खुफिया एजेंसियों की सक्रियता के कारण सफल नहीं हो पाए।
खुफिया रिपोर्टों से पता चला कि माओवादी नेताओं ने अपनी विशाल नकदी को बदलने के लिए स्थानीय ग्रामीणों, छोटे व्यापारियों और यहां तक कि अपने ही कैडरों पर दबाव डाला। हालांकि, सरकार की कड़े नियमों और निगरानी ने इस प्रयास को विफल कर दिया। कई माओवादी कैडरों को पुराने नोटों के साथ पकड़ा गया, जिससे उनकी योजनाएं ध्वस्त हो गईं। पुलिस और सुरक्षा बलों ने बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों से भारी मात्रा में पुराने नोटों के साथ माओवादी समर्थकों को पकड़ा था, जो इन नोटों को बदलने की कोशिश कर रहे थे।
नोटबंदी के कारण, माओवादियों को अपने हथियारों और गोला-बारूद की खरीद में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। उनके लिए नए कैडरों की भर्ती करना और मौजूदा कैडरों को भोजन, आश्रय और अन्य आवश्यक सामग्री प्रदान करना भी मुश्किल हो गया। कई माओवादी नेताओं ने आंतरिक बैठकों में इस बात को स्वीकार किया कि नोटबंदी ने उन्हें एक अभूतपूर्व वित्तीय संकट में डाल दिया है, जिससे उनकी परिचालन क्षमताएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप, कई माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया या मुख्यधारा में लौटने का विकल्प चुना, क्योंकि उनके पास संगठन के भीतर समर्थन की कमी थी।
सुरक्षा विशेषज्ञों और पूर्व पुलिस महानिदेशकों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि नोटबंदी एक अचूक प्रहार साबित हुई। उन्होंने बताया कि माओवादी अपनी 'टैक्स' प्रणाली के माध्यम से लाखों, यहां तक कि करोड़ों रुपये इकट्ठा करते थे, जिन्हें वे नकदी के रूप में रखते थे। नोटबंदी ने उनके इस संचित धन को रातोंरात रद्दी बना दिया, जिससे उनका मनोबल भी टूट गया। इसके प्रभाव इतने गहरे थे कि माओवादी अपनी खोई हुई वित्तीय स्थिति को फिर से हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिससे उनकी गतिविधियों में उल्लेखनीय कमी आई है।
पार्टियों की प्रतिक्रिया
नोटबंदी पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हमेशा इसे काले धन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद/नक्सलवाद के खिलाफ एक साहसिक और सफल कदम बताया है। भाजपा नेताओं ने विभिन्न मंचों पर दावा किया है कि नोटबंदी ने माओवादियों की रीढ़ तोड़ दी और उन्हें वित्तीय रूप से कमजोर कर दिया, जिससे देश में नक्सली हिंसा में कमी आई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कई बार अपने भाषणों में नोटबंदी के इस पहलू पर प्रकाश डाला है, इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला बताया है।
दूसरी ओर, कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने नोटबंदी की आलोचना मुख्य रूप से आम जनता, छोटे व्यापारियों और असंगठित क्षेत्र पर पड़े नकारात्मक प्रभावों के लिए की है। जबकि वे सीधे तौर पर माओवादियों पर पड़े प्रभाव को नकारते नहीं थे, उनका मुख्य जोर इस बात पर था कि नोटबंदी ने आम आदमी को परेशानी में डाला और अर्थव्यवस्था को धीमा कर दिया। कुछ विपक्षी नेताओं ने तर्क दिया कि नोटबंदी के घोषित लक्ष्यों, जैसे कि काले धन और आतंकवाद के वित्तपोषण पर लगाम लगाना, पूरी तरह से हासिल नहीं हो पाए। हालांकि, माओवादियों पर इसके प्रभाव पर उनकी प्रतिक्रिया उतनी मुखर नहीं रही जितनी कि अर्थव्यवस्था पर इसके व्यापक प्रभाव पर।
माकपा और भाकपा जैसी वामपंथी पार्टियां, जो अक्सर नक्सल समस्या को सामाजिक-आर्थिक असमानता से जोड़ती हैं, ने भी नोटबंदी को एक ‘फ्लॉप शो’ करार दिया था। उन्होंने तर्क दिया कि यह कदम आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बना और इसके बजाय बड़े पूंजीपतियों को फायदा पहुँचाया। हालांकि, उन्होंने सीधे तौर पर इस बात को स्वीकार नहीं किया कि नोटबंदी ने माओवादियों की कमर तोड़ी, बल्कि इसे एक ऐसी रणनीति के रूप में देखा जो जमीनी हकीकत को नहीं समझती थी। फिर भी, सरकारी आंकड़ों और सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्टों ने माओवादियों पर पड़े गंभीर वित्तीय आघात की पुष्टि की है।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
नोटबंदी का फैसला भारत सरकार की आंतरिक सुरक्षा रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इसने स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया कि सरकार देश की सुरक्षा के लिए कठोर और अप्रत्याशित कदम उठाने में संकोच नहीं करेगी। माओवादियों के लिए, यह एक ऐसा अप्रत्याशित झटका था जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी, क्योंकि उनका पूरा नेटवर्क नकदी पर आधारित था और वे बैंकिंग प्रणाली से पूरी तरह कटे हुए थे। इसने उन्हें अपने संसाधनों को प्रबंधित करने और अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए नए, अधिक जोखिम भरे तरीकों की तलाश करने पर मजबूर किया।
इस कदम ने माओवादियों को छिपने और अपने प्रभाव क्षेत्र को बचाने के लिए मजबूर किया, जिससे सुरक्षा बलों को उनके खिलाफ अधिक प्रभावी ढंग से अभियान चलाने का अवसर मिला। नोटबंदी के बाद से, माओवादी हिंसा में कमी आई है और उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में भी गिरावट दर्ज की गई है। यह उनके भर्ती अभियानों और हथियारों की खरीद पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला, जिससे उनकी दीर्घकालिक अस्तित्व की क्षमता पर सवालिया निशान लग गया। यह एक ऐसा रणनीतिक कदम था जिसने पारंपरिक सैन्य प्रतिक्रियाओं से परे जाकर एक गैर-सैन्य उपकरण का उपयोग करके दुश्मन को कमजोर किया।
दीर्घकाल में, नोटबंदी ने माओवादियों को एक ऐसे वित्तीय संकट में धकेल दिया है जिससे वे शायद कभी पूरी तरह से उबर नहीं पाएंगे। इसने उन्हें अपनी धन उगाही के तरीकों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है, और उन्हें ऑनलाइन या डिजिटल लेनदेन की ओर धकेलने का प्रयास भी किया है, जो उन्हें अधिक कमजोर और निगरानी के दायरे में लाता है। यह सरकार के लिए एक सीख भी थी कि वित्तीय हस्तक्षेप एक प्रभावी सुरक्षा उपकरण हो सकता है, और इसे भविष्य में भी अन्य अवैध गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
क्या देखें
- नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्य: सरकार की निरंतर कोशिश है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास और बुनियादी ढाँचे को मजबूत किया जाए, ताकि स्थानीय आबादी को माओवादी प्रभाव से दूर रखा जा सके।
- सुरक्षा बलों की रणनीति में बदलाव: माओवादियों के वित्तीय ढांचे को ध्वस्त करने के बाद, सुरक्षा बल अब उनकी बची हुई क्षमताओं को और कमजोर करने के लिए नई रणनीतियाँ अपना रहे हैं।
- माओवादियों की नई फंडिंग रणनीतियाँ: यह देखना होगा कि क्या माओवादी अब भी बड़े पैमाने पर जबरन वसूली जारी रख पाते हैं, या वे ऑनलाइन या अन्य गुप्त तरीकों से धन जुटाने की कोशिश करते हैं।
- स्थानीय आबादी पर प्रभाव: नोटबंदी के बाद, माओवादियों के समर्थन में कमी आई है या नहीं, और क्या स्थानीय लोग अब अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं, यह एक महत्वपूर्ण पहलू है।
- पुनर्वास और आत्मसमर्पण नीतियाँ: सरकार की पुनर्वास नीतियाँ कितनी प्रभावी साबित होती हैं और कितने माओवादी आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटते हैं, यह भी एक महत्वपूर्ण संकेतक होगा।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
नोटबंदी का माओवादी संगठनों पर पड़ा प्रभाव निर्विवाद रूप से महत्वपूर्ण था। इसने उनकी वित्तीय रीढ़ को तोड़ दिया और उन्हें अपने संचालन और विस्तार के लिए संघर्ष करने पर मजबूर किया। हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि माओवादी समस्या केवल वित्तीय पहलू तक सीमित नहीं है; यह सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, कुशासन और जनजातीय अधिकारों से भी जुड़ी हुई है। केवल वित्तीय झटके से समस्या का पूरी तरह समाधान नहीं हो सकता।
आगे की राह में, सरकार को अपनी त्रि-आयामी रणनीति — सुरक्षा, विकास और स्थानीय आबादी तक पहुंच — को जारी रखना होगा। वित्तीय नाकाबंदी ने माओवादियों को कमजोर तो किया है, लेकिन उन्हें पूरी तरह खत्म करने के लिए सतत प्रयासों, बेहतर खुफिया जानकारी और प्रभावित क्षेत्रों में विश्वास बहाली की आवश्यकता है। नोटबंदी एक शक्तिशाली उपकरण साबित हुई, जिसने माओवादी खतरे को एक नई दिशा में मोड़ दिया है, लेकिन अंतिम जीत के लिए एक व्यापक और समन्वित दृष्टिकोण अपरिहार्य है।
Comments
Comment section will be displayed here.